|| श्री सुसवाणी माताय नमः ||

History Of Shree Suswani Mata Ji Temple

History Of Shree Suswani Mata Ji Temple

श्री सुसवाणी माताजी का अवतरण

श्री सुसवाणी माताजी का अवतरण

अवतरण - आसोज सुद २ सोमवार वि. सं. १२१९

स्थान - नागौर ( राज.)

अंतरधाम - वि. सं. १२२९

स्थान - मोरखाना तहसील नोखा (ज़ि.) बीकानेर ( राज.)

श्री सुसवाणी माता जी मंदिर मोरखाना की स्थापना - माघ शुक्ला ५, वि. सं. १२३२

पिता का नाम - सेठ सतीदास जी सुराणा

ननिहाल - चण्डालिया परिवार

सगाई सम्बन्ध - वि. सं. १२२९ – दुगड़ परिवार

नागौर के सेठ सतीदास जी सुराणा के यहां संवत 1219 में आसोज सुदी 2 सोमवार के दिन माता जी स्वयं उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुई। संवत् 1229 में 10 वर्ष की आयु में उनका विवाह संबंध दुगड़ परिवार में करना तय हुआ। सुसवाणी जी जब बाने बैठी तब वहां के मुसलमान सूबेदार ने उनके रूपलावण्य पर मुग्ध होकर स्वयं उनसे विवाह करने की ठान ली। सेठ सतीदास जी को बुलाकर उनके सामने प्रस्ताव रखा। सेठ जी इस बात को सुनकर बहुत दुखी हुए। कहा- मुसलमान और हिंदू के बीच यह विवाह संबंध कैसे हो सकता है। किंतु सूबेदार तो अपनी ज़िद पर था। आज्ञा की अवहेलना करने पर उसने सारे परिवार को कोल्हू में पिसवाने की धमकी दी। सेठ सतीदास जी की रग रग में क्षत्रियत्व का खून बह रहा था, उन्होंने दृढ़ता से सूबेदार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। फिर क्या था, सूबेदार ने तुरंत ही सेठ सतीदास जी को जेल भिजवा दिया।

इधर जब उनके परिवार वालों को इस बात का पता लगा तो सभी सुसवाणी जी को कोसने लगे। तब वह दुखी हो मन ही मन अरिहंत भगवान का स्मरण करने लगी। प्रार्थना करते वक्त उन्हें नींद आ गई। स्वप्न में उन्हें किसी तेजस्वी मूर्ति ने दर्शन दिए और कहा घबराने की कोई बात नहीं है तू उस दुष्ट सूबेदार को कहलादे कि सात पांवडा की छूट देकर पैदल या घोड़े पर तेरा पीछा करें। यदि तुझे पकड़ सका तो तू उससे शादी कर लेगी परंतु वह ऐसा नहीं कर सकेगा जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि कल सुबह सभी सुराणा परिवार के सदस्यों के मस्तक पर केसर के तिलक लगे मिलेंगे।'

इतनी बात कह कर वह मूर्ति लोप हो गई। सुसवाणी जी सुबह उठी, उन्होंने अपने स्वप्न का सब हाल अपनी माता जी से कहा और उसके परिणाम स्वरुप सब के मस्तक पर केसर के तिलक देखे गए। सब को धैर्य बंधा , तुरंत ही सूबेदार को संदेश भेज दिया। सूबेदार सुनकर बड़ा प्रसन्न हुआ और तुरंत स्वीकृति दे दी। दोनों तरफ उत्साह से तैयारियां होने लगी। सेठ जी को मुक्त कर दिया गया। बहूत जल्दी ही खूब सज धज कर कुछ सैनिकों को साथ लेकर सूबेदार सेठ जी के मकान पर आ पहुंचा।

श्री सुसवाणीजी भी प्रतीक्षा में थी। दौड़ने से पूर्व उन्होंने अपने घर के दरवाजे पर कुमकुम भरे हाथ का छापा मारा वह पत्थर पर ज्यों का त्यों अंकित हो गया। सात पांवडे की छूट लेकर सुसवाणी जी आगे-आगे दौड़ने लगी और सूबेदार अपने सैनिकों सहित घोड़े पर बैठा उनका पीछा करने लगा। दौड़ते-दौड़ते दोनों ही बहुत दूर तक चले गए किंतु उनके बीच का फासला उतना ही बना रहा। जब सुसवाणी जी दौड़ते हुए थक गई तो उन्होंने प्रार्थना की-हे प्रभु! मेरी रक्षा करो, मैं अब अधिक नहीं दौड़ सकती। अधिष्टायी देवी ने प्रार्थना सुनी, तभी सामने से एक सिंह आता हुआ दिखाई पड़ा, देवीजी ने आकाशवाणी में उन्हें सिंह पर सवार होकर आगे बढ़ने को कहा। आज्ञा अनुसार सुसवाणी जी तुरंत सिंह पर सवार हो गई और सिंह दौड़ने लगा। चलते चलते वर्तमान बीकानेर जिले के नोखा तहसील के अंतर्गत श्री सिंधु मोरखाना गांव के नजदीक पहुंच गई। वहां भगवान शिव शंकर भोलेनाथ का अत्यंत प्राचीन मंदिर था। यहां पर सुसवाणी जी ने भोलेनाथ से प्रार्थना की हे' प्रभु ! मेरी रक्षा करो । मुझे छिपने का स्थान दो।

भोले शिव ने साक्षात प्रकट होकर अपना चिमटा मंदिर के सामने की ओर फेंका और कहा हे देवी तू सीधी चले जा, जहां पर यह चिमटा गिरा है वही तेरा स्थान है। भोलेनाथ का फेंका हुआ चिमटा एक केर के वृक्ष के बीच में पड़ा था। सुसवाणी जी के वहां पहुंचते ही पृथ्वी और वृक्ष दोनों शब्द करते हुए फटे। सुसवाणी जी सिहं सहित उसमें समा गई और जमीन फिर ज्यों की त्यों समतल हो गई। सुसवाणी जी के चीर का चार अंगुल पल्ला बाहर रह गया। सूबेदार और उसके साथी उस पल्ले को लेकर ही झगड़ने लगे, सभी उससे विवाह करना चाहते थे। बात बढ़ गई, तलवारें खिंच गई और वे वहीं आपस में लड़कर समाप्त हो गए जिनकी देवलियाँ आज भी मंदिर के परकोटे के बाहर विद्यमान हैं। सुसवाणी जी का यह आश्रय वृक्ष संवत 1229 से लेकर आज तक भी उसी स्थान पर हरा भरा खड़ा है।

माता सुसवाणी जी का पुनः अलौकिक परिचय |

माता सुसवाणी जी का पुनः अलौकिक परिचय |

संवत १२३२ की एक रात को श्री सतीदास जी के छोटे भाई श्री मल्हादास जी को स्वपन आया, स्वपन में देवी जी ने भूमि में प्रवेश होनी वाले स्थान पर मंदिर बनवाकर मूर्ति स्थापना करने की आज्ञा दी | श्री माल्हा जी ने उस स्थान पर पानी का अभाव व् धन की कमी बताई उस स्थान पर माताजी ने उन्हें गौशाला में गढ़ा धन का भंडार बताते हुए कहा की देवालय बनाकर उसमे भगवान की मूर्ति स्थापना करने को कहा, साथ ही अपना स्थान, गौशाला और कुआँ बनाने को कहा | धन का भंडार बताते हुए माता जी ने कहा कि गौशाला के बीच मोरी है जिसमे धन के भरे 108 कलश रखें हुए है इस धन को प्राप्त करके संसार में प्रतिष्ठा प्राप्त करो | श्री सुसवाणी जी की आज्ञा अनुसार श्री मल्हादास जी ने प्रातः काल उठते ही धन को निकलवाया | मूर्ति की स्थापना के लिए मंदिर आदि की नींव डालने से पहले एक कुआँ खुदवाने का कार्य शुरू हुआ| इस कुएँ में बहुत ही मीठा पानी निकला| मंदिर भी तैयार हुआ इसमें मूर्ति स्थापित करने हेतु फिर माता जी का ध्यान किया गया| रात्रि को स्वपन में प्रकट होकर माता जी ने कहा कि देवल के अगवानी बाजू में 30 पावंडा में 9 हाथ तले मूर्ति है| उसको निकालकर मंदिर में स्थापित करो | श्री सुसवाणी माता जी की प्रतिमा को मंदिर में प्रतिष्ठित करने का मुहूर्त माघ शुक्ला नवमी वि.सम्वत 1232 का निकला अतः उस दिन मंदिर की प्रतिष्ठा बड़े धूमधाम से संपन्न हुई।

Note: Black color cloths/ Shorts/ Leather Belts/ Leather Purse are not allowed in temple premises.